Thursday, January 7, 2010

baaz aa jao imtehaan-e-wafa lene se...


बाज़ आ जाओ इम्तेहान-ए-वफ़ा* लेने से,
मर न जाएँ तेरे आँखों को चुरा लेने से.

नज़र में कौंधती रहती हैं दिल की आवाजें,
ये राज़ छुपते नहीं होंठ दबा लेने से.

ये तीरगी* है मुद्दतों* से ख्यालों में दबी,
कैसे बुझ पायेगी एक शमा* जला लेने से.

कब तलक तन्हा आंसुओं का बोझ ढोओगे,
ये हलके होंगे हमें दोस्त बना लेने से.

दर्द बह जाते हैं आँखों को नर्म करने से,
ये ज़हर बनते हैं पलकों में छुपा लेने से.

अब तलक तेरी निगाहों में बसा करते हैं,
गिर न जाएँ कहीं अश्कों को जगह देने से.

हर घडी तेरी ही आवाज़ को हम तकते हैं,
दौड़ आयेंगे मुहब्बत से बुला लेने से.
*इम्तेहान-ए-वफ़ा=test of love,*तीरगी=darkness ,*मुद्दत=a while, * शमा=candle