Sunday, October 17, 2010

tu hai zameen pe to falaq sajaaye baitha kaun hai...


तू है ज़मीन पे तो फलक सजाये बैठा कौन है ,
,नूर बनकर ज़ेहन की गलियों में बहता कौन है.
लोग कहते हैं बशर मर के ही पाता है खुदा .
तो जिसका हो चुका हूँ जीते-जी वो खुदा कौन है.

किसकी तस्वीर है जो पलकों में उलझती है..
किसकी आवाज़ है जो कानो पे थिरकती है.
किसकी खुशबू है जो घुल गयी है साँसों में.
किसका एहसास है है जो जम गया है बाहों में .
किसके होंठों के लिए शायरी पिरोते हैं,
किसकी आहट की चादरें लपेट सोते हैं.
तुम्ही तो हो जिसकी ख़्वाबों से अपने यारी है,
सुबह से शाम ख्यालों में और होता कौन है.
तू है ज़मीन पे तो फलक सजाये बैठा कौन है....

Sunday, July 11, 2010

tumhe jaankar main apni pahchaan bhool baitha...


खुद अपनी शख्सियत के निशान भूल बैठा,
तुम्हे जानकार मैं अपनी पहचान भूल बैठा.

ख्वाहिश थी तेरी दुनिया जन्नत से हसीं कर दूं,
बनने चला खुदा था, हूँ इंसान भूल बैठा.

जबीं जहाँ की धुप में उलझी थी सिलवटों सी,
तूने बिखेरी ज़ुल्फ़ तो थकान भूल बैठा.

आँचल तेरा फलक था ,तेरे कदम थे राहें,
अपनी ज़मीन अपना आसमान भूल बैठा.

था जागती आँखों से भी ख़्वाबों के अंजुमन में,
किस राह छूटा नींद का मकान भूल बैठा.

तेरी मुस्कुराहटों को यूं सहेजता गया मैं,
मेरे लबों पे भी थी एक मुस्कान भूल बैठा.

तेरी मुलाकातों को बसा तो लिया यादों में,
फिर भूलना होता नहीं आसन भूल बैठा.

खुद अपनी शक्सियत के निशान भूल बैठा,
तुम्हे जानकार मैं अपनी पहचान भूल बैठा.

Sunday, February 14, 2010

bheje tere labon ko kuch tohfe khushbuon ke...


लफ़्ज़ों के फूल दिल के लिफाफे में बंद करके,
भेजे तेरे लबों कुछ तोहफे खुशबुओं के.

तारों से टका आसमान का रेशमी एक आँचल,
प्यासी किसी बदली की आँखों में घुलता काजल.
अल्हड अदा के घुँघरू पिरोये हवा की पायल.
और कलियों पर अंगडाइयां लेते महक के झोंके.
भेजे तेरे लबों को...

अरमानो की एक चादर,ख़्वाबों का एक सिरहाना
छत पर थिरकती धुप का छेड़ा हुआ तराना,
तुम्हे रात भर तकने का कोई नया बहाना
कुछ गुदगुदाते किस्से पुराने खंडहर के.
भेजे तेरे लबों को..

तुम्हारे माथे के लिए सूरज का सुर्ख टीका,
कानो पे लहलहाता एक शोर पत्तियों का,
चंदा से गुंथे गजरे,लिबास चांदनी का.
आहट को तेरी तकते,ये साज़ धडकनों के.
भेजे तेरे लबों को कुछ तोहफे खुशबुओं के.

Thursday, January 7, 2010

baaz aa jao imtehaan-e-wafa lene se...


बाज़ आ जाओ इम्तेहान-ए-वफ़ा* लेने से,
मर न जाएँ तेरे आँखों को चुरा लेने से.

नज़र में कौंधती रहती हैं दिल की आवाजें,
ये राज़ छुपते नहीं होंठ दबा लेने से.

ये तीरगी* है मुद्दतों* से ख्यालों में दबी,
कैसे बुझ पायेगी एक शमा* जला लेने से.

कब तलक तन्हा आंसुओं का बोझ ढोओगे,
ये हलके होंगे हमें दोस्त बना लेने से.

दर्द बह जाते हैं आँखों को नर्म करने से,
ये ज़हर बनते हैं पलकों में छुपा लेने से.

अब तलक तेरी निगाहों में बसा करते हैं,
गिर न जाएँ कहीं अश्कों को जगह देने से.

हर घडी तेरी ही आवाज़ को हम तकते हैं,
दौड़ आयेंगे मुहब्बत से बुला लेने से.
*इम्तेहान-ए-वफ़ा=test of love,*तीरगी=darkness ,*मुद्दत=a while, * शमा=candle