Friday, May 20, 2011

एक अधपकी ग़ज़ल...


वक़्त की रेत पर लिखा अधूरा लम्हा हूँ,
लहर को छूके पल में दास्तान हो जाऊं.
बसा लो तो नज़र में ख्वाब बन के रह जाऊं,
बहा लो गर तो अश्कों से बयान हो जाऊं..


नफरतों में झुलसती जा रही तहजीबों से,
आ बगावत करें हम हाथ की लकीरों से.
ओढ़कर प्रीत का आँचल तू मीरा हो जाना,
मैं मोहब्बत बिखेरता कुरान हो जाऊं.


तेरी दुआ हूँ मैं होठों पे बिखर जाऊँगा ,
आस की राह से साँसों में उतर जाऊंगा .
मैं तेरी नब्ज़ के सांचों में ढाल कर खुद को ,
तेरी खामोश धड़कन की ज़बान हो जाऊं.