Thursday, June 11, 2009

zindagi has padi....


चाँद धुँधला सा था..रात ढलती न थी,
आये तुम तो खिली..टूटकर चाँदनी.
होठों पर कुछ नए..गीत सजने लगे,
जाने क्यूँ खामखाँ..जिंदगी हँस पड़ी.



टिमटिमाते हैं अब...रात भर आँखों में,
ख्वाब बहके से हैं...यार सुन थाम ले.
फुरसतें हैं बहुत...आ नया कुछ करें,
चाँद को कुछ हरा..कुछ बैगनी रंग दें
आसमान भर लिया...पलकों की ओट में..
ख्वाहिशें हैं नयी...ज़िन्दगी हँस पड़ी.......



मौसमों से कहीं..खुशबुओं में धुली,
ला रही है हवा..एक सदा संदली.
करवटों में दबी..बीती एक याद सी,
गुमशुदा हो गयी..शामें वो बुझी-बुझी.
ढूंढ़ते हम रहे,जो डगर प्यार की..
सामने है खडी..जिंदगी हँस पड़ी.
ज़िन्दगी हँस पड़ी

Monday, June 8, 2009

har shaam tujhe dekhoon.....

रब की इनायतों की इतनी सी कहानी हो,
हर शाम तुझे देखूँ,हर रात सुहानी हो.

मैं श्याम बनके तेरी,धड़कन की लय पे थिरकूँ,
तू बनके मीरा मेरी ही धुन में दीवानी हो.

तेरे रुख पे पड़ी दर्द की चिंगारियां बुझा दूँ,
पलकों पे अपनी रख लूँ,गर आँख में पानी हो.

न फिक्र हो जहाँ की,न वास्ता किसी से,
एक दुसरे में खोकर ,बस उम्र बितानी हो.

तेरी रूह में घुल जाऊं,जाते हुए जहाँ से,
मेरे गीतों की तेरे लब पे,कायम यूँ निशानी हो.

इन बंदिशों के आगे,झुक जायें सारे वादे,
हमें आशिकी की ऐसी कीमत न चुकानी हो.

रब की इनायतों की इतनी सी कहानी हो,
हर शाम तुझे देखूँ,हर रात सुहानी हो.

Sunday, June 7, 2009

daastaan se lagte ho


जब भी मिलते हो नयी दास्तान से लगते हो,
कभी रूठे तो कभी मेहरबान से लगते हो..

बात कुछ छेड़ूँ तो तुम फेर लेते हो आँखें,
खता हुयी है क्या जो बदगुमान से लगते हो..

मिजाज़ आपके बदलते हैं मौसम की तरह,
कभी छुपते हो कभी खुद अयान से लगते हो.

तुम्हारे ख़्वाबों का घरोंदा है ऊंचा इतना,
की मैं ज़मीं पे हु तुम आसमान से लगते हो.

कभी हंस दो तो सौ चिराग दिल में जलते हैं,
बुझते हैं लाख, अगर बेजुबान से लगते हो.

न लबों पर है तबस्सुम, न तपिश चेहरे पर,
खोये रहते हो खुद में,परेशान से लगते हो.

Friday, June 5, 2009

lamha hu main....


एक लम्हा हूँ मैं ख्वाबों से आँखों को जलाए रखता हूँ,
कुछ प्यार में भीगे लम्हों को,होठों पे सजाये रखता हूँ.

सर्दी की ठिठुरती रातों में,सीने से सटा सिरहाना हूँ,
मैं ओस के कतरों को थामे, बेताब सा कोई पत्ता हूँ.
बाहों में किसी की खुशबू का एहसास जगाये रहता हूँ

गर्मी के थपेडो में झुलसे,माथों पे पेड़ का साया हूँ
या थकी एडियाँ सहलाता,पागल सा हवा का झोंका हूँ
प्यासी पलकों पे कुछ अपने, कुछ ख्वाब पराये रखता हूँ

खिड़की पे बिखरा बारिश के छीटों का सुरीला नगमा हूँ
झूलों से बादल छूने का, मासूम सा कोई सपना हूँ
अबके सावन तन्हाई न हो,यही दिल में दुआएं रखता हूँ

फूलों के मौसम में गालों पे बिखरा सुर्ख सा मंज़र हूँ
बहते झरने में पुरवा के छूने से उठती हलचल हूँ
कलियों से हसीं दो आँखों में, घर अपना बसाये रखता हूँ

एक लम्हा हूँ मैं ख्वाबों से आँखों को जलाये रखता हूँ .......