खुद अपनी शख्सियत के निशान भूल बैठा,
तुम्हे जानकार मैं अपनी पहचान भूल बैठा.
ख्वाहिश थी तेरी दुनिया जन्नत से हसीं कर दूं,
बनने चला खुदा था, हूँ इंसान भूल बैठा.
जबीं जहाँ की धुप में उलझी थी सिलवटों सी,
तूने बिखेरी ज़ुल्फ़ तो थकान भूल बैठा.
आँचल तेरा फलक था ,तेरे कदम थे राहें,
अपनी ज़मीन अपना आसमान भूल बैठा.
था जागती आँखों से भी ख़्वाबों के अंजुमन में,
किस राह छूटा नींद का मकान भूल बैठा.
तेरी मुस्कुराहटों को यूं सहेजता गया मैं,
मेरे लबों पे भी थी एक मुस्कान भूल बैठा.
तेरी मुलाकातों को बसा तो लिया यादों में,
फिर भूलना होता नहीं आसन भूल बैठा.
खुद अपनी शक्सियत के निशान भूल बैठा,
तुम्हे जानकार मैं अपनी पहचान भूल बैठा.