वक़्त की रेत पर लिखा अधूरा लम्हा हूँ,
लहर को छूके पल में दास्तान हो जाऊं.
बसा लो तो नज़र में ख्वाब बन के रह जाऊं,
बहा लो गर तो अश्कों से बयान हो जाऊं..
नफरतों में झुलसती जा रही तहजीबों से,बसा लो तो नज़र में ख्वाब बन के रह जाऊं,
बहा लो गर तो अश्कों से बयान हो जाऊं..
आ बगावत करें हम हाथ की लकीरों से.
ओढ़कर प्रीत का आँचल तू मीरा हो जाना,
मैं मोहब्बत बिखेरता कुरान हो जाऊं.
तेरी दुआ हूँ मैं होठों पे बिखर जाऊँगा ,
आस की राह से साँसों में उतर जाऊंगा .
मैं तेरी नब्ज़ के सांचों में ढाल कर खुद को ,
तेरी खामोश धड़कन की ज़बान हो जाऊं.
awesum..:)
ReplyDeletebeautifully written vivek! infact you have tremendous grip on the language especially figures of speech and rhyming schemes are excellent! :)
ReplyDeletethnx ayush :)
ReplyDeletethnx a lot abhishek sir for reading n appreciating it ...:)
ReplyDeleteखूबसूरत अधपकी गज़ल ... शीर्षक भी देवनागरी में दें तो बेहतर होगा
ReplyDeleteकृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
संगीता जी ...अभी ब्लॉग की सेत्तिंग्स बदली थी तो शायद ये बदलाव हो गए हों..आपको असुविधा हुयी ,इसके लिए खेद..
ReplyDeleteएवं आपने इस अधपकी ग़ज़ल को पढ़ा और सराहा ,इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ..
इसी तरह आपका मार्गदर्शन और आशीष बना रहे .... धन्यवाद :)
बेहतरीन... विवेक... :)
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