Wednesday, March 16, 2011

फिर से सपनो के चूल्हे पर उम्मीद पकाई जाए.

कच्ची नींदों की आंच ,उदासी के झोंकों से बुझती है..

आँखों की सूखी हांडी में,यादों की खुरचन चुभती है .

बिसरी बातों की राख दबी हसरत सुलगाई जाए..

फिर से सपनो के चूल्हे पर,उम्मीद पकाई जाए.


बेरंग दवात गिरा कागज़ पर ,फीके नगमे बहुत बुने..

तकिये से छुपा तस्वीर कोई,खारी बूंदों के साज़ सुने.

कहती है कलम गीतों में अब चोखा सा कोई रंग भरें.

और रंग में खिलती अल्हड सी एक ग़ज़ल सजाई जाये...

फिर से सपनो के चूल्हे पर उम्मीद पकाई जाये.


पलकों की खाली डिबिया में फिर चंदा की परछाई हो...

रातों को तारे गिनते-गिनते गुम होती तन्हाई हो.

एक ज़िक्र पे ठंडी आह चुभे ,एक नाम लिए अंगडाई हो..

एक झलक की आस में जाग-जाग फिर आँख सुजाई जाये.

फिर से सपनो के चूल्हे पर उम्मीद पकाई जाए.

1 comment:

  1. this one seems better in terms of writing style. you should try more on "urdu"..it suits your style of writing. good one!

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