Wednesday, October 19, 2011

कभी ख़याल डगमगायेंगे...


कभी ख़याल डगमगायेंगे , कभी अल्फाज़ कांपते होंगे .
हाँ मगर लम्हों की लहरों को जब टटोलोगे. लाखों तूफ़ान झांकते होंगे.

किसी लहर की स्याही से कलम भर लेना , उड़ेल देना यादों के सफ़ेद कागज़ पे,
देखना धड़कने तुकबन्दियाँ सुझा देंगी, ग़ज़ल के चेहरे से घूंघट भी सरकते होंगे.

किसी दिन फुरसतों के बाग़ में बैठे-बैठे , ज़ेहन की मखमली टहनी को जब कुरेदोगे,
देखना आज भी मुरझाये दो गुलाबों के ,निशान उँगलियों के बीच उभरते होंगे .

दफन कर तो दिया है डायरी के पन्नो में , साथ गुज़रे सुहाने वक़्त के हर साए को.
मगर तस्वीर उसकी हाथ में लेकर अक्सर,गर्म आहें तो तुम आज भी भरते होंगे

-" विवेक "

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