"शुभ दीपावली "
एक नूर का टुकड़ा बचा के अपनी छत पर जले चिरागों से ,
आ सांस उड़ेल दें बुझे पड़े मिटटी के कच्चे आलों में.
इस बार न हो बारूद के धब्बे उलझे हवा की चादर में,
मुस्कान बिखेरो और रंग दो मावस को आज उजालों में.
इस बरस बुझे न आस कोई , न कोई दामन खाली हो,
दीवार नहीं दिल भी जगमग हो , कुछ ऐसी दीवाली हो
"शुभ दीपावली " - विवेक
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