Friday, October 28, 2011

"शुभ दीपावली "


एक नूर का टुकड़ा बचा के अपनी छत पर जले चिरागों से ,
सांस उड़ेल दें बुझे पड़े मिटटी के कच्चे आलों में.
इस बार हो बारूद के धब्बे उलझे हवा की चादर में,
मुस्कान बिखेरो और रंग दो मावस को आज उजालों में.
इस बरस बुझे आस कोई , कोई दामन खाली हो,
दीवार नहीं दिल भी जगमग हो , कुछ ऐसी दीवाली हो

"शुभ दीपावली " - विवेक

No comments:

Post a Comment