रूबरू मिलना मुनासिब न रहा,पर ख्यालों में तुमको देखेंगे.
लबों पे आंह भर के टूटते जवाबों में,और सवालों में तुमको देखेंगे.
अंधेरों से घिरा जहाँ मेरा,जिसने मुद्दत से रौशनी नहीं पी,
जो तसव्वुर में जान भरते हैं,उन उजालों में तुमको देखेंगे.
हंसी का साथ छूट सकता है,दर्द से रिश्ता बना रहता है,
ख़ुशी के जाम तो घडी में बिखर जाते हैं,गम के प्यालों में तुमको देखेंगे.
घर की दीवार पर टिका लम्हा,अपने पन्ने बदलता जाएगा,
याद की आंधी से पलटते हुए,गुज़रे सालों में तुमको देखेंगे.
जिस्मों के बीच में दीवारें हैं,तेरे ख़्वाबों की रौशनी पर तो नहीं,
आँखों में रात भर सुलगती हुई,इन मशालों में तुमको देखेंगे.
रूबरू मिलना मुनासिब न रहा,पर ख्यालों में तुमको देखेंगे.
लबों पे आंह भर के टूटते जवाबों में,और सवालों में तुमको देखेंगे.
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