Thursday, June 11, 2009

zindagi has padi....


चाँद धुँधला सा था..रात ढलती न थी,
आये तुम तो खिली..टूटकर चाँदनी.
होठों पर कुछ नए..गीत सजने लगे,
जाने क्यूँ खामखाँ..जिंदगी हँस पड़ी.



टिमटिमाते हैं अब...रात भर आँखों में,
ख्वाब बहके से हैं...यार सुन थाम ले.
फुरसतें हैं बहुत...आ नया कुछ करें,
चाँद को कुछ हरा..कुछ बैगनी रंग दें
आसमान भर लिया...पलकों की ओट में..
ख्वाहिशें हैं नयी...ज़िन्दगी हँस पड़ी.......



मौसमों से कहीं..खुशबुओं में धुली,
ला रही है हवा..एक सदा संदली.
करवटों में दबी..बीती एक याद सी,
गुमशुदा हो गयी..शामें वो बुझी-बुझी.
ढूंढ़ते हम रहे,जो डगर प्यार की..
सामने है खडी..जिंदगी हँस पड़ी.
ज़िन्दगी हँस पड़ी

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