Monday, March 14, 2011

बीती आधी सदी मगर...


बीती आधी सदी मगर , एक दौर अभी भी ठहरा है.

कुछ हलकी फुलकी यादों का , आखों पे असर अभी गहरा है.

कुछ अपने रंग में रंग लिया ,कुछ साथ रहा कुछ छूटा है.

कभी वक़्त ने होंठ पे हंसी रखी, कभी रुला गया जब रूठा है.


कल ही की बात तो लगती है ,कुछ कांपते-थमते क़दमों से.

एक सोच ज़मीन पर उतरी थी,तकनीक के धुंधले सपनों से.

एक कौम ने मन में ठानी थी, दुनिया के रंग बदलने की.

न थमने वाली उड़ानों को,अपने पंखों में भरने की.


फिर यूं ही हाथ से हाथ मिले,और नीव पड़ी एक दुनिया की.

जहाँ फर्क न था तहजीबों का,न ज्ञान की कोई सरहद थी.

आँखों को मलती थी सुबह,नयी राह दिखाके उजालों की.

बेफिक्र सी शामें घुलती थी, सोहबत में हँसते यारों की.


इन पांच दशक में न जाने,कितने आयाम तराशे हैं.

लम्हों की रेत जकड़ने को,फुर्सत के कुरेदे सांचे हैं.

न जाने कितनी मशीनों में,दम भरा है मेरे सायों ने.

जाने कितने घर-इमारत को,साँसे दी हैं उन हाथों ने.


न सिर्फ ज़बान किताबों की, पुर्जों की और पसीने की.

तालीम बिखेरी है मैंने, नयी कौम में खुलकर जीने की.

यूं तो मेरे भी दामन में,काली रातों के किस्से हैं.

पर धुप की प्यास जगाने में,ये भी तो वाजिब हिस्से हैं.


अब आज खड़ा हूँ मैं MANIT ,दुनिया में एक मिसाल लिए.

जो बीत गया है उसको दीवारों के पीछे क़ैद किये.

आवाज़ नयी है; नाम नया ,भीतर तो मगर वही चेहरा है.

बीती आधी सदी मगर,एक दौर अभी भी ठहरा है....

एक दौर अभी भी ठहरा है...

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