जब भी मिलते हो नयी दास्तान से लगते हो, कभी रूठे तो कभी मेहरबान से लगते हो.. बात कुछ छेड़ूँ तो तुम फेर लेते हो आँखें, खता हुयी है क्या जो बदगुमान से लगते हो.. मिजाज़ आपके बदलते हैं मौसम की तरह, कभी छुपते हो कभी खुद अयान से लगते हो. तुम्हारे ख़्वाबों का घरोंदा है ऊंचा इतना, की मैं ज़मीं पे हु तुम आसमान से लगते हो. कभी हंस दो तो सौ चिराग दिल में जलते हैं, बुझते हैं लाख, अगर बेजुबान से लगते हो. न लबों पर है तबस्सुम, न तपिश चेहरे पर, खोये रहते हो खुद में,परेशान से लगते हो. |
tooooooooooo good ........
ReplyDeletethnx bhai
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