Friday, June 5, 2009

lamha hu main....


एक लम्हा हूँ मैं ख्वाबों से आँखों को जलाए रखता हूँ,
कुछ प्यार में भीगे लम्हों को,होठों पे सजाये रखता हूँ.

सर्दी की ठिठुरती रातों में,सीने से सटा सिरहाना हूँ,
मैं ओस के कतरों को थामे, बेताब सा कोई पत्ता हूँ.
बाहों में किसी की खुशबू का एहसास जगाये रहता हूँ

गर्मी के थपेडो में झुलसे,माथों पे पेड़ का साया हूँ
या थकी एडियाँ सहलाता,पागल सा हवा का झोंका हूँ
प्यासी पलकों पे कुछ अपने, कुछ ख्वाब पराये रखता हूँ

खिड़की पे बिखरा बारिश के छीटों का सुरीला नगमा हूँ
झूलों से बादल छूने का, मासूम सा कोई सपना हूँ
अबके सावन तन्हाई न हो,यही दिल में दुआएं रखता हूँ

फूलों के मौसम में गालों पे बिखरा सुर्ख सा मंज़र हूँ
बहते झरने में पुरवा के छूने से उठती हलचल हूँ
कलियों से हसीं दो आँखों में, घर अपना बसाये रखता हूँ

एक लम्हा हूँ मैं ख्वाबों से आँखों को जलाये रखता हूँ .......

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